ग्रीष्मचर्याः
लगभग अप्रैल से जून महीने तक
(सावन आने तक की दिनचर्या)
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ग्रीष्मऋतु में हवा लू के रूप में तेज लपट की तरह चलती है जो बड़ी कष्टदायक और स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद होती है। अतः इन दिनों में पथ्य आहार-विहार का पालन करके स्वस्थ रहें।
पथ्य आहारः
सूर्य की तेज गर्मी के कारण हवा और पृथ्वी में से सौम्य अंश (जलीय अंश) कम हो जाता है। अतः सौम्य अंश की रखवाली के लिए
मधुर,
तरल,
हल्के,
सुपाच्य,
ताजे,
जलीय,
शीतल
तथा स्निग्ध
गुणवाले पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
जैसे ठण्डाई, घर का बनाया हुआ
सत्तू,
ताजे नींबू निचोड़कर बनाई हुई
शिकंजी,
देसी गाय के दूध की खीर,
देसी गोमाता का दूध,
कैरी,
अनार,
अंगूर,
देशी गाय के दूध से बना घृत अर्थात बिलोने वाला घी, बाज़ार के बटर आयल से बचे
ताजी चपाती,
छिलके वाली मूंग की
दाल,
मौसम्बी,
लौकी,
गिल्की या तोरई
चने की भाजी, चौलाई,
परवल,
केले की सब्जी,
तरबूज के छिल्के की सब्जी,
हरी ककड़ी
हरा धनिया,
पोदीना,
कच्चे आम को भूनकर बनाया गया मीठा पना,
गुलकन्द,
पेठा आदि खाना चाहिए।
प्रातः काल मल त्याग के पश्चात सूर्योदय से पहले जीरा और नमक मिलाकर देशी गाय के दूध से बनी छाछ (लस्सी नहीं) पीना सर्वोत्तम है
छाछ, मट्ठा, तक्र, या मोर वह है जिसमे से मक्खन निकल गया हो
लस्सी वह जिसमे से मक्खन न निकला हो
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इस ऋतु में हरड़े का सेवन गुड़ के साथ समान मात्रा में करना चाहिए जिससे वात या पित्त का प्रकोप नहीं होता है।
इस ऋतु में प्रातः पानी-प्रयोग अवश्य करना चाहिए जिसमें सुबह-सुबह खाली 600ml पानी पीना होता है। इससे ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, दमा, टी.बी. जैसी भयंकर बीमारियाँ भी नष्ट हो जाती हैं। यह प्रयोग न करते हों तो शुरु करें और लाभ उठायें।
घर से बाहर निकलते समय एक गिलास पानी पीकर ही निकालना चाहिए। इससे लू लगने की संभावना नहीं रहेगी।
बाहर के गर्मी भरे वातावरण में से आकर तुरन्त पानी नहीं पीना चाहिए। 10-15 मिनट बाद ही पानी पीना चाहिए।
इस ऋतु में रात को जल्दी सोकर प्रातः जल्दी जगना चाहिए। रात को जगना पड़े तो एक-एक घण्टे पर ठण्डा पानी पीते रहना चाहिए। इससे उदर में पित्त और कफ के प्रकोफ नहीं रहता।
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पथ्य विहारः
प्रातः सूर्योदय से पहले ही जगें।
शीतल जलाशय के पास घूमें।
शीतल पवन जहाँ आता हो वहाँ सोयें।
जहाँ तक संभव हो सीधी धूप से बचना चाहिए।
सिर में चमेली, बादाम रोगन, नारियल का तेल लगाना चाहिए।
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अपथ्य आहारः
तीखे, खट्टे, कसैले एवं कड़वे रसवाले पदार्थ इस ऋतु में नहीं खाने चाहिए।
नमकीन, तेज मिर्च-मसालेदार तथा तले हुए पदार्थ, बासी दही, अमचूर, आचार, सिरका, इमली आदि नहीं खायें।
शराब पीना ऐसे तो हानिकारक है ही लेकिन इस ऋतु में विशेष हानिकारक है।
फ़्रिज का पानी पीने से दाँतों व मसूढ़ों में कमजोरी, गले में विकार, टॉन्सिल्स में सूजन, सर्दी-जुकाम आदि व्याधियाँ होती हैं इसलिए फ्रीज का पानी न पियें। मिट्टी के मटके का पानी पियें।
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अपथ्य विहारः
रात को देर तक जागना और सुबह देर तक सोये रहना त्याग दें।
अधिक व्यायाम, स्त्री सहवास, उपवास, अधिक परिश्रम, दिन में सोना, भूख-प्यास सहना वर्जित है।
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लगभग अप्रैल से जून महीने तक
(सावन आने तक की दिनचर्या)
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ग्रीष्मऋतु में हवा लू के रूप में तेज लपट की तरह चलती है जो बड़ी कष्टदायक और स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद होती है। अतः इन दिनों में पथ्य आहार-विहार का पालन करके स्वस्थ रहें।
पथ्य आहारः
सूर्य की तेज गर्मी के कारण हवा और पृथ्वी में से सौम्य अंश (जलीय अंश) कम हो जाता है। अतः सौम्य अंश की रखवाली के लिए
मधुर,
तरल,
हल्के,
सुपाच्य,
ताजे,
जलीय,
शीतल
तथा स्निग्ध
गुणवाले पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
जैसे ठण्डाई, घर का बनाया हुआ
सत्तू,
ताजे नींबू निचोड़कर बनाई हुई
शिकंजी,
देसी गाय के दूध की खीर,
देसी गोमाता का दूध,
कैरी,
अनार,
अंगूर,
देशी गाय के दूध से बना घृत अर्थात बिलोने वाला घी, बाज़ार के बटर आयल से बचे
ताजी चपाती,
छिलके वाली मूंग की
दाल,
मौसम्बी,
लौकी,
गिल्की या तोरई
चने की भाजी, चौलाई,
परवल,
केले की सब्जी,
तरबूज के छिल्के की सब्जी,
हरी ककड़ी
हरा धनिया,
पोदीना,
कच्चे आम को भूनकर बनाया गया मीठा पना,
गुलकन्द,
पेठा आदि खाना चाहिए।
प्रातः काल मल त्याग के पश्चात सूर्योदय से पहले जीरा और नमक मिलाकर देशी गाय के दूध से बनी छाछ (लस्सी नहीं) पीना सर्वोत्तम है
छाछ, मट्ठा, तक्र, या मोर वह है जिसमे से मक्खन निकल गया हो
लस्सी वह जिसमे से मक्खन न निकला हो
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इस ऋतु में हरड़े का सेवन गुड़ के साथ समान मात्रा में करना चाहिए जिससे वात या पित्त का प्रकोप नहीं होता है।
इस ऋतु में प्रातः पानी-प्रयोग अवश्य करना चाहिए जिसमें सुबह-सुबह खाली 600ml पानी पीना होता है। इससे ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, दमा, टी.बी. जैसी भयंकर बीमारियाँ भी नष्ट हो जाती हैं। यह प्रयोग न करते हों तो शुरु करें और लाभ उठायें।
घर से बाहर निकलते समय एक गिलास पानी पीकर ही निकालना चाहिए। इससे लू लगने की संभावना नहीं रहेगी।
बाहर के गर्मी भरे वातावरण में से आकर तुरन्त पानी नहीं पीना चाहिए। 10-15 मिनट बाद ही पानी पीना चाहिए।
इस ऋतु में रात को जल्दी सोकर प्रातः जल्दी जगना चाहिए। रात को जगना पड़े तो एक-एक घण्टे पर ठण्डा पानी पीते रहना चाहिए। इससे उदर में पित्त और कफ के प्रकोफ नहीं रहता।
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पथ्य विहारः
प्रातः सूर्योदय से पहले ही जगें।
शीतल जलाशय के पास घूमें।
शीतल पवन जहाँ आता हो वहाँ सोयें।
जहाँ तक संभव हो सीधी धूप से बचना चाहिए।
सिर में चमेली, बादाम रोगन, नारियल का तेल लगाना चाहिए।
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अपथ्य आहारः
तीखे, खट्टे, कसैले एवं कड़वे रसवाले पदार्थ इस ऋतु में नहीं खाने चाहिए।
नमकीन, तेज मिर्च-मसालेदार तथा तले हुए पदार्थ, बासी दही, अमचूर, आचार, सिरका, इमली आदि नहीं खायें।
शराब पीना ऐसे तो हानिकारक है ही लेकिन इस ऋतु में विशेष हानिकारक है।
फ़्रिज का पानी पीने से दाँतों व मसूढ़ों में कमजोरी, गले में विकार, टॉन्सिल्स में सूजन, सर्दी-जुकाम आदि व्याधियाँ होती हैं इसलिए फ्रीज का पानी न पियें। मिट्टी के मटके का पानी पियें।
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अपथ्य विहारः
रात को देर तक जागना और सुबह देर तक सोये रहना त्याग दें।
अधिक व्यायाम, स्त्री सहवास, उपवास, अधिक परिश्रम, दिन में सोना, भूख-प्यास सहना वर्जित है।
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